Hanuman Chalisa हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो भगवान हनुमान की स्तुति में लिखा गया है। इसे पढ़ने के कई लाभ हैं, जो न केवल आध्यात्मिक होते हैं बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
आध्यात्मिक लाभ:
- भगवान हनुमान की कृपा: Hanuman Chalisa का नियमित पाठ करने से भगवान हनुमान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। वे अपने भक्तों की सभी समस्याओं और कष्टों को दूर करते हैं।
- धार्मिक शांति: इसे पढ़ने से मन को शांति और स्थिरता मिलती है। यह आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
- भक्तिभाव में वृद्धि: Hanuman Chalisa का पाठ करने से भगवान राम और हनुमान के प्रति भक्तिभाव बढ़ता है, जो जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाता है।
मानसिक लाभ:
- मानसिक शांति: Hanuman Chalisa का पाठ मानसिक तनाव और चिंता को कम करता है। यह मन को शांति और सुकून प्रदान करता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: इसके नियमित पाठ से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो नकारात्मकता को दूर करता है।
शारीरिक लाभ:
- स्वास्थ्य में सुधार: Hanuman Chalisa का पाठ करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है।
- वातावरण की शुद्धि: इसके पाठ से आसपास का वातावरण शुद्ध होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
अन्य लाभ:
- विघ्नों का नाश: Hanuman Chalisa का पाठ सभी प्रकार की बाधाओं और विघ्नों को दूर करता है।
- संकटों से मुक्ति: यह पाठ संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
Hanuman Chalisa का नियमित पाठ न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानसिक, शारीरिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभकारी है। इसलिए, हमें Hanuman Chalisa का पाठ अवश्य करना चाहिए।
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंतकाल रघुवर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाई।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥